Jalandhar (punjab e news ) सूबे में बढ़ रही बेअदबी की घटनाओं को देख कर पंजाब के सिक्ख संगठनो द्वारा 2015 में अमृतसर के नजदीक सरबत खालसा का आयोजन किया गया था। तब सरकार ने इस आयोजन को रुकवाने तथा असफल बनाने के भरसक प्रयास किये थे। सरकार इसे कानून के खिलाफ मान रही थी तो संगत इसे धर्म की रक्षा के लिए ज़रूरी मंथन मान रही थी। सरकार ने तब कई बड़े धार्मिक आगुओं को नज़रबंद करवा दिया था। पूरी कोशिश थी की कम से कम लोग सरबत खालसा में शिरकत करे। अब जब आम आदमी पार्टी के कुछ बड़े नेता हाईकमान से हट कर कोई कन्वेंशन करवाना चाहते है तो वही स्तिथि बनी हुई है।
वैसे सरबत खालसा की एक धार्मिक पृष्ठभूमि तथा उसके आयोजन के धार्मिक कारण होते हैं लेकिन यहाँ हम उसका ज़िक्र सिर्फ आज़ादी को लेकर कर रहे हैं। हमारा भाव धर्म की सियासत से तुलना करना कतई नहीं है।
मुद्दे पर वापिस आते हैं। तत्कालीन अकाली भाजपा सरकार ने जब उक्त आयोजन को असफल करने के लिए साम दाम दंड भेद सब का प्रयोग किया था ,केजरीवाल भी खैहरा और कँवर संधू को खुद्दे लाइन लगाने के लिए वही सब कर रहे हैं। अपने चहेतों से कन्वेशन को पार्टी विरोधी बताने के बावजूद भी जब कोई बात न बनी तो आखिरी समय में मास्टर स्ट्रोक खेल कर कल 2 अगस्त को ही दिल्ली में पंजाब विधायकों की बैठक रख दी। हालांकि इससे पहले वह कितनी बार बैठके कर चुके है शायद ही कोई जनता हो। भगवंत मान को प्रधान बनाने के लिए बैठक हुयी थी उसमें भी खैहरा अपने समर्थको सहित नाराज़ हो कर बाहर आ गए थे। तो अब अचानक केजरीवाल को अपने विधायकों की याद कैसे आ गई। अगर यह काम पहले ही किया होता तो आज शायद यह नौबत न आती।
अब दूसरे पक्ष पर आते हैं। खैहरा ने बठिंडा में कन्वेंशन की घोषणा तो कर दी ,शायद उन्हें यह नहीं पता की कल का हजूम ही उनका सियासी भविष्य तय करेगा। जिन विधायकों के साथ होने का दावा वह कर रहे हैं कुछ पता नहीं सत्ता के लालच में कल किसकी तबियत खराब हो जाए। भगवंत मान तो आज ही भर्ती हो गए हैं।
2 अगस्त का बठिंडा कन्वेंशन कई मायनो में महतवपूर्ण है। आम आदमी पार्टी के अस्तित्व तथा खैहरा -संधू जोड़ी की सियासी तस्वीर भी कल ज़ाहिर हो जाएगी। ज़्यादा कहना ठीक न होगा क्यूंकि .....रात अभी बाकी है।