New delhi (punjab e news ) पूरे देश में जब आईपीसी की धारा 377 को लेकर हल्ला है और सुप्रीम कोर्ट ने इसके प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से जुड़ी याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है, उस वक्त एक महिला अपने पति के खिलाफ कोर्ट पहुंची है। महिला का आरोप है कि चार साल की शादीशुदा जिंदगी में उसके पति ने बार-बार उसपर ओरल सेक्स का दबाव बनाया, जो अप्राकृतिक है।
महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एनवी रामना और एमएम शांतनागौदर ने आरोपी पति को नोटिस जारी किया है। महिला की ओर से वकील अपर्णा भट्ट ने दलील दी कि पत्नी पर ओरल सेक्स के लिए दबाव बनाना धारा 377 के तहत अपराध है और प्रकृतिक भी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने सेक्शन 377 से जुड़ीं याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान बेंच के सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सहमति से ओरल सेक्स और ऐनल सेक्स को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता और न ही इसे अप्राकृतिक माना जा सकता है लेकिन महिला की याचिका 377 के प्रावधानों को अपराध न माने जाने के मुद्दे को और उलझाने का काम कर रही है।
याची महिला की शादी साल 2014 में गुजरात में हुई थी। जब वह 15 साल की थीं तभी आरोपी पति से उनकी सगाई हो गई थी। उन्होंने बताया कि उनका डॉक्टर पति अकसर उनपर ओरल सेक्स का दबाव बनाता है। महिला की वकील ने कहा, 'महिला का पति उनकी आपत्ति और परेशानी को समझने के काबिल नहीं। पति यहीं नहीं रुका, उसने दोनों के बीच की इंटिमेसी की विडियो रिकॉर्डिंग के लिए भी जबरन तैयार कर लिया। पति के दबाव के आगे महिला को झुकना पड़ा, जिसके बूते वह उन्हें धमकाता है और मारपीट भी करता है।'
पीड़ित महिला ने अपने पति के खिलाफ अप्राकृतिक सेक्स और रेप की एफआईआर दर्ज कराई है। पीड़िता का पति एफआईआर को रद्द कराने पहुंचा तो गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 375 में मैरिटल रेप का कोई प्रावधान नहीं है और साथ ही धारा 377 के तहत अपराध के आरोपों को लेकर दलीलों को भी खारिज कर दिया।