पंजाब

वैदिक ज्योतिष के अनुसार हृदय रोग से बचने के लिए करें यह उपाए

आजकल की भागदौड़ भरी जीवनशैली में खुद को स्वस्थ रखना सबसे बड़ी चुनौती है। दूसरों से आगे निकलने की होड़ में इन्सान के खाने-पीने, सोने-जागने और उठने-बैठने का पूरा क्रम बिगड़ गया है, लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसका कितना घातक परिणाम हो सकता है। ऐसे कई कारण हैं जिनके अनुसार लाइफ स्टाइल बीमारियों में डायबिटीज और हृदयरोग सबसे ऊपर है।

आइये आज हम हृदय रोग और ज्योतिष के संबंध के बारे में जानकारी हासिल करते हैं…

वैदिक ज्योतिष से इनसान के जीवन में घटित होने वाली पल-पल की जानकारी मिल जाती है। उसे कब किस आयु में कौन-सी बीमारी होगी, किस तरह की बीमारी होगी और उसका क्या समाधान हो सकता है। आजकल हृदयरोग तेजी से बढ़ रहा है और यह प्रत्येक उम्र के लोगों को हो रहा है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार हृदय रोग के लिए जिम्मेदार कुछ ग्रह, योग और कुंडली के स्थान होते हैं।

सूर्य: सूर्य पिता और आत्मा का कारक ग्रह होता है। इससे हृदय रोग के बारे में भी जानकारी हासिल की जाती है। इसकी शुभ-अशुभ स्थितियों के अनुसार रोग की तीव्रता का पता लगाया जाता है।

चंद्र: चंद्रमा मन और मस्तिष्क का कारक होता है। सृष्टि के समस्त जल तत्वों का प्रतिनिधित्व चंद्र करता है। जैसा कि सभी जानते हैं मनुष्य के शरीर में भी 75 प्रतिशत तक पानी होता है। रक्त में भी पानी होता है, जिसकी सही मात्रा में तरलता होना आवश्यक है। हृदय ही रक्त को पूरी बॉडी में पंप करता है। इसलिए चंद्र की स्थिति भी देखी जाती है।

मंगल: मंगल ग्रह हमारे शरीर की मांसपेशियों का प्रतिनिधित्व करता है। क्युकी हृदय भी मांसपेशियों से बना होता है इसलिए हृदय रोग की पड़ताल करते समय मंगल की स्थिति देखना आवश्यक है।

राहु: राहु अचानक घटनाएं, दुर्घटनाएं, बीमारियां लाने वाला ग्रह है। यह किसी भी बीमारी को गंभीर अवस्था तक पहुंचा देता है। यदि व्यक्ति को किसी प्रकार का हृदयरोग है तो राहु से यह देखा जाता है कि कहीं व्यक्ति को अचानक हार्ट अटैक तो नहीं हो जाएगा।

कुंडली के भाव भी हैं जिम्मेदार
ग्रहों को देखकर किसी भी बीमारी के बारे में भविष्यवाणी करना उचित नहीं है, जन्म कुंडली के भाव और उनमें उपस्थित शुभ-अशुभ ग्रहों की स्थिति का जानना आवश्यक है।

जन्म कुंडली का प्रथम भाव लग्न कहलाता है। इससे व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, रूप, रंग के साथ हृदय का भी ज्ञान लिया जाता है। इस भाव में उच्च-नीच ग्रहों के अनुसार रोगों का पता लगाया जाता है।

चतुर्थ: चतुर्थ भाव सुख स्थान कहलाता है। इसे हृदय स्थान भी कहते हैं। इस भाव से हृदय संबंधी जानकारी आती हैं। जैसे व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति, हृदय में होने वाले बदलाव आदि।

छठा स्थान बीमारियों का घर होता है। इससे व्यक्ति की समस्त बीमारियों का पता लगाया जाता है। जिनमें दीर्घकालिक बीमारियों की जानकारी हासिल की जाती है।

अष्टम: आठवां स्थान मृत्यु स्थान होता है। इससे निकट भविष्य में होने वाले रोगों के बारे में जानकारी हासिल होती है। आकस्मिक मृत्यु का योग भी इसी से पता चलता है। हृदय रोग में कई बार आकस्मिक मृत्यु हो जाती है, इसलिए इस भाव में मौजूद ग्रहों को देखना जरूरी है।

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हृदय रोग से बचने के लिए ये उपाय कर सकते हैं

यदि आपको कोई हृदय रोग है या उसकी आशंका लग रही है तो सबसे पहले आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें उसके बाद ही किसी ज्योतिषीय उपाय की ओर ध्यान दें। ज्योतिषीय उपाय भी बहुत पॉवरफुल होते हैं!

सूर्योदय के समय रविवार को 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करना हृदयरोगों से सुरक्षा प्रदान करता है।
सोमवार को रात के समय आरामदायक स्थिति में बैठकर चंद्र के ।। ओम् सोम सोमाय नमः ।। मंत्र का 108 बार जाप करें।

मंगलवार को सुबह पूजा के समय मंगल के मंत्र ।। ओम् अं अंगारकाय नमः ।। मंत्र का 108 बार जाप करे।
पन्ना, सफेद मोती और पीला पुखराज धारण किया जा सकता है।

 

Jyoti Kaushal, Astrologer

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