फर्जी जीएसटी बिलों व गलत तरीके से टैक्स रिफंड प्राप्त करने वाले एक संगठित नैटवर्क के खिलाफ केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर लुधियाना की एंटी-इवेजन विंग ने बड़ी कार्रवाई
फर्जी जीएसटी बिलों व गलत तरीके से टैक्स रिफंड प्राप्त करने वाले एक संगठित नैटवर्क के खिलाफ केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सी.जी.एस.टी.) लुधियाना की एंटी-इवेजन विंग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए एक और अन्य आरोपी को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी बीते दिनों की गई है और इससे पहले इसी केस में एक अन्य आरोपी को 8 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था।
गिरफ्तार किया गया नया आरोपी इस पूरे फर्जीवाड़े का मुख्य संचालक माना जा रहा है। वह 2 फर्जी फर्मो का संचालक था और फर्जी जीएसटी बिल जारी करने के साथ-साथ गलत इनपुट टैक्स क्रैडिट (आईटीसी) के जरिए भारी मात्र में रिफंड लेने में सक्रिय भूमिका निभा रहा था। इस गैरकानूनी गतिविधि के चलते सरकार को करोड़ों रुपए का नुक्सान हुआ है।
1786 करोड़ के फर्जी जीएसटी बिल किए जारी
अब तक की जांच में सामने आया है कि यह सिंडिकेट कई फर्जी कंपनियों का संचालन कर रहा था, जिन्होंने कुल मिलाकर लगभग 1786 करोड़ के फर्जी जीएसटी बिल जारी किए और इसके आधार पर करीब 180 करोड़ का गलत आईटीसी पास किया गया, जबकि वस्तुओं या सेवाओं की कोई वास्तविक आपूर्ति नहीं की गई थी। इन फर्जी आईटीसी को आगे टैक्स रिफंड प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया गया, खासकर इनवर्टेड डय़ूटी स्ट्रक्चर के तहत।
आरोपियों से पूछताछ जारी
इस नैटवर्क में शामिल अकेली एक फर्म ने अकेले 8.74 करोड़ का जीएसटी रिफंड भी गलत तरीके से प्राप्त किया था, जो कि उन सप्लायर्स के आधार पर था जो असल में अस्तित्व में ही नहीं थे। इस फर्म से जुड़े एक आरोपी को पहले ही 8 जुलाई को गिरफ्तार किया जा चुका है। सीजीएसटी लुधियाना कमिश्नरेट के अनुसार दोनों आरोपियों से पूछताछ जारी है और अब तक की जांच से यह स्पष्ट है कि यह नैटवर्क बड़े स्तर पर देश के राजस्व को नुक्सान पहुंचा रहा था।
इस सिंडिकेट में और भी कई फर्जी कंपनियां व व्यक्ति शामिल
अधिकारियों का मानना है कि इस सिंडिकेट में और भी कई फर्जी कंपनियां व व्यक्ति शामिल है, जिनकी पहचान के लिए जांच तेजी से आगे बढ़ रही है। सीजीएसटी विभाग ने दोहराया है कि वह टैक्स फ्रॉड जैसे गंभीर अपराधों के खिलाफ सतर्क व सक्रिय है और इस तरह की धोखाधड़ी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जारी रहेगी। विभाग का यह भी कहना है कि ईमानदार करदाताओं के हितों की रक्षा व सरकारी राजस्व की सुरक्षा के लिए ऐसी जांचें अत्यंत आवश्यक हैं।